आने वाले समय में मछली प्रेमियों को बिना किसी जीव की हत्या किए असली मछली के स्वाद का आनंद मिल सकेगा। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) और केंद्रीय शीतजल मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान (CICFR) भीमताल के वैज्ञानिक मछली की कोशिकाओं से मांस तैयार करने की दिशा में महत्वपूर्ण शोध कर रहे हैं। संस्थान ने मछली मीट का प्रोटोटाइप तैयार कर लिया है और अनुमान है कि दो वर्षों में उपभोक्ताओं तक यह लैब-निर्मित स्वादिष्ट मांस पहुँच सकेगा।

सीआईसीएफआर की टीम पिछले तीन वर्षों से इस नवाचार पर कार्य कर रही है और प्रारंभिक चरण में रेनबो ट्राउट तथा स्नो ट्राउट पर प्रयोग किए जा रहे हैं। इस तकनीक में मछली की मांसपेशियों या पंखों से कोशिकाएं निकाली जाती हैं, जिन्हें पोषक तत्वों से भरपूर माध्यम और नियंत्रित वातावरण में विकसित किया जाता है। इन्हें बार-बार सेल कल्चर फ्लास्क में बढ़ाया जाता है, जिससे स्थायी कोशिका पंक्ति (सेल लाइन) तैयार होती है। बाद में बायो-रिएक्टर की सहायता से इनकी संख्या कई गुना बढ़ाई जाती है और विशेष बायो-इंक के जरिए इन्हें संरचनात्मक रूप दिया जाता है। परिणामस्वरूप तैयार मांस स्वाद, बनावट और पोषण में पारंपरिक मछली जैसा ही होता है, लेकिन इसके लिए किसी जीव को मारना नहीं पड़ता।

डॉ. अमित पांडे ने कहा था कि दुनिया जलवायु परिवर्तन, खाद्य संकट और पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना कर रही है। भारत जैसे देश, जहाँ मछली भोजन, संस्कृति और अर्थव्यवस्था से गहराई से जुड़ी है, वहाँ पारंपरिक मत्स्य पालन कई दिक्कतों से ग्रस्त है। ऐसे में लैब-निर्मित मछली मीट न केवल बढ़ती मांग को पूरा करेगा बल्कि राजस्व का भी स्रोत बनेगा। उनका मानना था कि भविष्य में जब पानी की समस्या और गहराएगी तथा कई प्रजातियाँ विलुप्ति की कगार पर होंगी, तब यह नवाचार उपभोक्ताओं की पहली पसंद साबित होगा।

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