लंबे समय से यह प्रश्न इतिहासकारों और गणितज्ञों को उलझाए रहा है कि क्या भारत के वैदिक ऋषि पाइथागोरस प्रमेय और त्रिभुजों के रहस्यों से परिचित थे। अब कुमाऊं विश्वविद्यालय के गणित विभाग के पूर्वाध्यक्ष प्रो. आर.पी. पंत ने अपने गहन शोध और विश्लेषण से इस रहस्य से पर्दा उठा दिया है। उनका शोधपत्र Hymns in Yajurveda: Algebra and Geometry of Pythagorean Triples प्रतिष्ठित जर्नल Innovation Sciences and Sustainable Technologies में प्रकाशित हुआ है। इसमें उन्होंने स्पष्ट किया है कि शुक्ल यजुर्वेद के अठारहवें अध्याय के सूक्त 24 और 25 में ऐसे संख्यात्मक सूत्र दिए गए हैं जिनसे पाइथागोरस त्रिक, द्विघात डायोफैंटाइन समीकरणों के पूर्णांक हल और फिबोनाची जैसी श्रेणियों तक की व्याख्या मिलती है।

1920 के दशक में गणितज्ञ विभूति भूषण दत्त ने अनुमान जताया था कि वैदिक ऋषियों के पास युक्तिसंगत त्रिभुज खोजने का सामान्य सूत्र रहा होगा। प्रो. पंत ने अब इसे प्रमाण सहित सिद्ध कर दिया है। उनके अनुसार, सूक्त 24 में 1 से 33 तक विषम संख्याओं के जोड़े दर्ज हैं, जबकि सूक्त 25 में 4 से 48 तक चार के गुणकों के जोड़े हैं। इनका संयोजन अपने आप पाइथागोरस त्रिक (जैसे 3-4-5, 5-12-13, 7-24-25) उत्पन्न करता है। यह पद्धति इतनी सरल है कि किसी अतिरिक्त गणना या प्रमाण की आवश्यकता नहीं पड़ती।

यह खोज दर्शाती है कि वैदिक काल के विद्वान न केवल पाइथागोरस प्रमेय से परिचित थे बल्कि उसे व्यवस्थित सूत्रों में प्रस्तुत भी कर चुके थे। यज्ञ वेदियों और अग्निकुंडों के निर्माण में ज्यामिति की आवश्यकता के चलते इन संख्याओं को देवता मानकर सूत्रों में समाहित किया गया।

शोध में यह भी सामने आया कि इन सूक्तों से ऐसी संख्यात्मक श्रेणियां निकलती हैं जिन्हें यूरोप बाद में “फिबोनाची सीक्वेंस” और “गोल्डन रेश्यो” के नाम से पहचानने लगा। यह प्रमाण है कि गणित के इन सूत्रों की जड़ें भारत में कई शताब्दियों पहले मौजूद थीं।

प्रो. पंत का यह शोध न केवल भारत की प्राचीन गणितीय परंपरा की प्रामाणिकता सिद्ध करता है बल्कि यह भी दर्शाता है कि विश्व गणित के इतिहास में भारत की भूमिका अत्यंत मौलिक और अग्रणी रही है।

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