भारतीय हॉकी टीम के उभरते सितारे बाबी धामी की ज़िंदगी संघर्ष और प्रेरणा से भरी हुई है। पिथौरागढ़ जिले के कटघरानी गांव के रहने वाले बाबी को बचपन में ही आर्थिक तंगी के कारण अपने पैतृक घर को छोड़कर नाना-नानी के पास टनकपुर आना पड़ा। यहीं उनके मामा और पहले कोच प्रकाश सिंह ने उन्हें हॉकी की बारीकियां सिखाईं और खेल के मैदान में नई राह दिखाई।
गांव से टीम इंडिया तक का सफर-:
सिर्फ 10 साल की उम्र में ही बाबी ने हॉकी स्टिक थाम ली थी। टनकपुर के छोटे मैदान से शुरुआत कर उन्होंने महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कॉलेज, देहरादून में अपनी पढ़ाई के साथ-साथ खेल में भी उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। वर्ष 2017 में वह साई (स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया) सेंटर से जुड़े और राज्य से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक के टूर्नामेंट्स में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया।
बाबी ने 2021 में जूनियर वर्ल्ड कप से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कदम रखा। इसके बाद 2022 में एफआईएच फाइव्स में गोल्ड मेडल जीता और 2023 में ओमान में आयोजित जूनियर एशिया कप में भारत को स्वर्ण पदक दिलाया। इस दौरान उन्होंने उप-कप्तान की जिम्मेदारी निभाई और फाइनल में पाकिस्तान को 2-1 से हराकर जीत दिलाई। बॉबी के पिता श्याम सिंह मेहनत-मजदूरी करते हैं और मां हेमा देवी गृहणी हैं। ऐसे में मामा प्रकाश सिंह ने उन्हें न केवल हॉकी की ट्रेनिंग दी बल्कि उनके जीवन को दिशा भी दी। प्रकाश खुद टनकपुर में कोच हैं और अब तक कई खिलाड़ियों को आर्मी टीम तक पहुंचा चुके हैं।
धामी को मिले सम्मान-:
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी बाबी की उपलब्धियों से प्रभावित होकर उन्हें सम्मानित कर चुके हैं। सरकार ने भरोसा दिलाया है कि बाबी जैसे प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को हर संभव मदद दी जाएगी।